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काश! दिलो-दिमाग पर हो ठिठुरन का असर

ANANYA
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पूरा देश इन दिनों हड्डियां कंपा देनेवाली शीतलहरी से प्रभावित है। काश! इन ठंडी हवाओं का असर हमारे दिलो-दिमाग पर भी हो। हम ठंडे दिल और दिमाग से उनके बारे में भी सोचें जो इस ठंड से बेहाल-बेजार हैं। देखा जाये तो भारतवर्ष में सवा अरब की आबादी में बमुश्किल दस प्रतिशत ही ऐसे सक्षम लोग हैं, जिनके पास शीतलहर से बचाव  के साधन मयस्सर हैं। बाकी लोग भगवान  के भरोसे हैं। हम-आप जो सक्षम-समर्थ लोग हैं, क्या भी इनके बारे में सोचने का भी वक्त निकाल पाते हैं? यह मानव के स्वभाव में है क‍ि अगर क‍िसी काम को हमने सफलतापूर्वक अंजाम दे दिया तो इसका श्रेय हम खुद लेते हैं। हम मान बैठते हैं  क‍ि हमने जो कुछ क‍िया, वह हमारी योग्यता थी। इसके विपरीत अगर हम कोई काम पूरा न कर पायें तो कहते हैं कि यह तो भगवान की मर्जी थी। यानी हम जो कर लें, वह हमारी योग्यता और जो न कर पाये वह भगवान भरोसे। मुझे लगता है कि हम अगर वाकई सक्षम हैं तो इस ठंड में ठंडे दिलो दिमाग से उनके बारे में भी सोचें, जो इस ठंड में बेजार हैं-बेहाल हैं। क्यों न हम ऐसे व्यक्ति के भी काम आयें जो हममें से एक हो, भले ही उसका मजहब कुछ हो, वह चाहे जहां  का रहनेवाला हो या फिर उसकी जाति कुछ भी हो। है तो वह मानव ही। हम सही अर्थों में सक्षम तभी हैं, जब हम  क‍िसी  के काम आ जायें। क्या यही मानव जीवन की सार्थकता नहीं है? जिन्होंने ऐसा सोचा, चाहे वो कोई संस्था हो, कोई व्यक्ति हो, नि:संदेह वह बधाई का पात्र है। कहीं आप ऐसा तो नहीं सोच रहे क‍ि जिसके लिए मुझे करना है, वो मेरा कौन लगता है? उससे मेरा रिश्ता क्या है? आखिर मैं उसके लिए क्यों करूं? मुझे उससे क्या मिलने वाला है? लेक‍िन आपसे अर्ज बस इतनी कि इन सवालों पर ठंडे दिल और दिमाग से मंथन करें। आपको जवाब खुद मिल जायेगा। आप मानव तो हैं, पर मानवीय नहीं। आपने अपने ऊपर वो चादर ओढ़ रखी है, जो आप साथ नहीं लाये। जरा सोचें…

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