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संतान पर न डालें अपने सपनों का बोझ!

ANANYA
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हर इंसान अपनी जिंदगी में सपनों और उम्मीदों के ताने-बाने बुनता है। उम्मीदें न हों हमें मायूसियों का अंधेरा जकड़ लेगा। सपने न हों तो जीवन बेरंग हो जाएगा। उम्मीदें हैं तो जिंदगी जवां है। सपने हैं तो जीवन का मकसद है, अन्यथा सब कुछ व्यर्थ-बेकार। जरूरी नहीं कि हर सपना साकार हो। आवश्यक नहीं हमारी हर उम्मीद को मंजिल मिल जाये। कुछ सपने पूरे होते हैं, कुछ टूटते हैं। उम्मीदें कभी हमारे दामन में खुशियां बिखेर देती हैं, तो कभी शीशे की तरह टूट कर बिखर भी जाती हैं। कामयाब इंसान वही है जो सपने टूटने के बाद भी सपना देखना बंद नहीं करता, जो उम्मीदों के भहराकर गिर जाने के बाद भी नाउम्मीदियों को खुद पर हावी नहीं देता।
हम अपनी जिंदगी की पतवार सफलताओं-असफलताओं, कामयाबियों-नाकामियों के बीच खेते हुए ही आगे बढ़ते हैं। लेकिन अगर हमने अपने सपनों का संसार, अपनी उम्मीदों का महल अगर खुद की बजाय दूसरों पर टिका रखा हो तो हम उसका टूटना-बिखरना बर्दाश्त नहीं कर पाते। आप खुद किसी मंजिल को हासिल न कर पायें तो मान लेते हैं नियति यही थी, पर आपकी संतान अगर किसी परीक्षा में फेल हो जाये तो यह आपके लिए नाकाबिले बर्दाश्त हो जाता है। आप उसकी लानत-मलामत कर डालते हैं। वह आपकी नजरों में नालायक, निकम्मा हो जाता है। भाई साहब! यह तो देखिए कि कहीं वह आपकी ही उम्मीदों और सपनों का बोझ ढोते हुए धराशायी तो नहीं हो गया। हम यह नहीं कहते कि अपनी संतान को लेकर सपने मत देखिए। यह भी नहीं कहते कि उनसे उम्मीद मत रखिये। गुजारिश बस इतनी है कि उसके कंधों पर सपनों-उम्मीदों का गैरजरूरी बोझ मत डालिये। यह भी तो देखिए तो उसके अपने सपने क्या हैं, उसकी अपनी चाहत, उसका अपना पैशन क्या है। अपने छोटे बच्चे के रोजमर्रे की रूटीन पर कभी गौर करने की जहमत उठायी है आपने? वह अहले सुबह उठते ही नित्य कार्य निपटाकर स्कूल का रुख करता है। स्कूल में घंटों पढ़ाई के बाद लौटते हुए वह ट्यूशन या कोचिंग में क्लास करता है। फिर किसी दिन उसके म्यूजिक क्लास का शेड्यूल तय है तो किसी दिन कम्प्यूटर क्लास का । सोने के पहले स्कूल का होमवर्क निपटाता है या फिर दिये गये एसाइनमेंट पूरा करता है। इस पूरी व्यस्त दिनचर्या के बीच पिसते अपने बच्चे पर अगर आप अपने तमाम सपनों का बोझ डाल देंगे तो हश्र क्या होगा? इन्हीं हालात से उपजे तनाव में आज बच्चे कई बार खुदकुशी जैसा कदम उठा ले रहे हैं। और तब हमारे-आपके पास छाती पीटकर स्यापा करने के सिवा कुछ नहीं बचता। तो मनन आपको खुद करना होगा। देखना होगा कि आपने अपने बच्चे से जितनी अपेक्षाएं पाल रखी हैं, उसके बोझ से वह कहीं दबा तो नहीं जा रहा। आपको उसकी सफलताओं-असफलताओं को समान रूप से स्वीकारना होगा। असफलताओं के क्षण में उसे फटकार नहीं, प्यार देने की जरूरत है। उसे हतोत्साहित नहीं, प्रेरित करने की आवश्यकता है।

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